पृष्ठभूमि
1. वर्तमान पीढी के दिग्भ्रमित होने के परिणाम युवाओं में निराशा, अवसाद हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्तता, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति, नकारात्कमता और यहॉ तक की आत्महत्या की प्रवृत्ति के रूप में सामने आ रहे हैं।
2. इस अवस्था और व्यवस्था में सक्रिय-सार्थक हस्तक्षेप समय की आवश्यकता ही नहीं, अनिवार्यता है। छात्र का बालक यदि कल का नागरिक है तो यह भी सत्य है कि वह भविष्य का माता-पिता (अभिभावक) भी है।
3. प्रारंभ से ही यदि लालन-पालन के विविध आयामों से हम आज की युवा होती पीढ़ी को जागरूक करने का प्रयत्न करेंगे तो नई पीढ़ी अभिभावकीय दायितव बोध के साथ गृहस्थ जीवन में कदम रखेगी। लालन-पालन की दिशा में समक्ष और सहज माता-पिता के हाथों में संस्कारवान और समर्थ पीढ़ी का निर्माण संभव हो सकेगा।
4. बदलते समय में संयुक्त परिवारों के विखण्डन ने लालन-पालन की चुनौतियों को और जटिल बना दिया है किन्तु विडम्बना यह है कि इस दायित्व को हम उतनी गंभीरता से नहीं लेते । 'समय आने पर सब समझ जायेंगे, सीख जायेंगे' के चिंतन में इस दिशा में समाज का तदर्थवादी सोच ही परिलक्षित होता है।
वर्तमान परिदृश्य में आवश्यकता और महत्व
1. उपभोक्तावाद और खुले बाजार की व्यवस्था से यूथ सामाजिक परिदृश्य बदला है। एकाकी परिवार में पेरेन्टिंग की चुनौतियॉ बढ़ रही हैं।
2. युग पीढ़ी के असामान्य मनोवैज्ञानिक व्यवहार को विद्वान त्रुटिपूर्ण पेरेन्टिंग का परिणाम मानते हैं।
3. सुव्यवस्थित तरीके से पेरेन्टिंग कौशल सिखने के कोई संगठित-संस्थागत प्रवास नहीं हो रहे हैं।
4. इंटरनेट और सोशल-साइटस के बढ़ते प्रचलन ने व्यक्ति के चारो ओर एक काल्पनिक दुनिया सृजित कर दी है। युवा पीढ़ी को यथार्थ के धरातल की हकीकतों से रूबरू कराने के लिए चुनौतियों भरे वातावरण में अपनी जगह बनाने के लिये और सहिष्णुता और सामजस्य से सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने के लिए अच्छी पेरेन्टिंग की और ध्यान देना आवश्यक है।
सहभागी संस्थायें
महिला एवं बाल विकास विभाग के विविध अभिकरण। 2. महिला एवं शिशु विकास से संबंधित अन्य
निकाय। 3. संबंधित आयोग। 4. संबंधित स्वंयसेवी संगठन। 5. विश्वविद्यालय और महाविद्यालय
। 6. इस क्षेत्र में कार्यरत संस्थायें । 7. अन्य संस्थायें।
पेरेन्टिंग के विविध आयाम
1. संस्कृति, संस्कार, मूल्य और पंरपरायें 2. पोषण एवं स्वास्थ्य देखभाल 3. बाल मनोविज्ञान/बाल
मनोचिकित्सा 4. गृह विज्ञान 5. शिशु देखभाल 6. शरीर-विज्ञान-संरचना एवं प्रजनन स्वास्थ्य
7. शिशु सुरक्षा एवं शिक्षा 8. असामान्य व्यवहार/व्यवहार विज्ञान 9. समाज शास्त्र/मानव
शास्त्र/समाज कार्य 10. विविध प्रावधान 11. अन्य संबंधित आयाम
विशेषज्ञता के क्षेत्र
लालन-पालन के जटिल दायित्व में विशेषज्ञता के अनेक क्षेत्र सम्मिलित होते है: 1. शरीर
संरचना और प्रजनन प्रक्रिया ।
2. गर्भाधान ।
3. स्वस्थ और सुरक्षित प्रसव
4. पोषण और आहार 5. बाल विकास 6. बाल सुरक्षा और शिक्षा 7. बाल-मनोविज्ञान 8. भाषा
और संचार 9. संस्कार और संस्कृति 10. अनौपचारिक शिक्षण 11. मॉ-बच्चे के अधिकार 12.
शासकीय सहयोग हेतु विविध योजनायें 13. जच्चा-बच्चे का स्वास्थ्य 14. मातृत्व 15. बच्चों
के विकास से जुडी-शासकीय और गैर-शासकीय संस्थायें
किन क्षेत्रों में कार्य किया जाना है
1. अनेक संगठन और संस्थाओं के साथ-साथ कुछ शासकीय प्राप्त हो रहे हैं। इनमें समन्वय
कर, संगठित रूप से वांछित लक्ष्य की ओर सक्रिय प्रवास किया जाना है। 2. फिल्म,वेबसाइट्स
वीडियों मटेरियल, आलेख, पुस्तकें,सदंर्भ-ग्रंथ आदि में पेरेन्टिंग से असंबंधित तथ्यों
का वैज्ञानिक संकलन/दस्तावेजीकरण। 3. कौशल के रूप में पेरेन्टिंग को अनुमन्य करना।
सेक्टर स्किल और नेशनल स्किल संगठनों से मान्यता। 4. आवश्यक और सुसंगत तथ्यों के आधार
पर एक पाठयक्रम की कल्पना, संरचना और संचालन। 5. स्कूल स्तर की पाठय-सामग्री में बिना
अतिरिक्त विषय जोडे पेरेन्टिंग की मूल बातों को समझने पर बल देना। 6. विशेषज्ञों के
अनुभव के आधार पर ट्रेनिंग ऑफ़ ट्रेनर्स के मॉडयूल विकसित करना। 7. वेबसाइट का विकास।
लक्ष्य
1. किशोरावस्था से ही बच्चों के लालन-पालन का स्किल आज की पीढ़ी को सुव्यवस्थित ढ़ग
से प्रदान करना। 2. लालन-पलान को एक कौशल के रूप में मान्य करना। 3. लालन-पलान के कौशल
को विकासित करने के लिए मॉडयूल तैयार करना। 4. इस क्षेत्र में विशेषज्ञों को तैयार
करने के लिए प्रशिक्षण मॉडयूल का निर्माण प्रशिक्षण। 5. इस क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न
संगठनों, व्यक्तियों में अनुभव, ज्ञान और संवेदना की साझेदारी।